गमों की आंधी जब चलती है
तो दिल धडक़ उठता है,यादों की बदरी जब छाती है
तो मन मचल उठता है,
मुझे चाहत नही की हमेशा प्यार ही मिलेबहती गंगा में सोने का बाण ही मिले,
शायद रोता हूं कभी किसी की याद आने पर
कौन जाने मेरा साथ कभी किसी को न मिले,
है कहीं खामोशी पर दिखती नही
रौशनी भी है कहीं पर चमकती नही,
मैं खुद में अंजान हूं, खुद से हैरान हूं
अपनी जिंदगी से मैं थोड़ा परेशान हूं,
कहीं छुट सा गया है समय मेरा
और रूठ सा गया है तकदीर,
कैसे दिखाऊ मैं किसी को अपनी जिंदगी की तस्वीर
और उस पर खिंची हुई नफरत की लकीर
प्रतीक शेखर