Tuesday, August 9, 2011

एक बात

गमों की आंधी जब चलती है
तो दिल धडक़ उठता है,
यादों की बदरी जब छाती है
तो मन मचल उठता है,
मुझे चाहत नही की हमेशा प्यार ही मिले
बहती गंगा में सोने का बाण ही मिले,
शायद रोता हूं कभी किसी की याद आने पर
कौन जाने मेरा साथ कभी किसी को न मिले,


है कहीं खामोशी पर दिखती नही
रौशनी भी है कहीं पर चमकती नही,
मैं खुद में अंजान हूं, खुद से हैरान हूं
अपनी जिंदगी से मैं थोड़ा परेशान हूं,
कहीं छुट सा गया है समय मेरा
और रूठ सा गया है तकदीर,
कैसे दिखाऊ मैं किसी को अपनी जिंदगी की तस्वीर
और उस पर खिंची हुई नफरत की लकीर

प्रतीक शेखर


 

2 comments:

  1. nicely expressed pratik.But if its totally personal then don't worry my dear friend.Life is a theater,were the show must go on...so,be happy.Enjoy life...

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  2. आपने सही कहा नियती जी, जिन्दगी एक प्रकार की थ्रिएटर है।

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