Saturday, January 21, 2012

शहर तुम्हारा

शहर तुम्हारा मुझे अब अंजाना लगता है,
ख्यालों में तुम्हारा आना  हर पल सताता है,
हर वक्त तुम्हारे होने का एहसास मुझे दिलाती है ये हवा,
अब तो सारा महफिल मुझे पता नही क्यों विराना लगता है।

कोई तो दर्द है मेरे सीने में छुपा हुआ,
मंजिलें है समाने पर चलना दुर्लभ हुआ,
साथ होता अगर तुम्हारा तो क्या कहना था,
दिलों का दीदार करना अब बड़ा मुश्किल हुआ.....

प्रतीक शेखर

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