मैं यहां यह कहना चाहता हूं कि नक्सल आंदोलन की शुरूआत में जो इसका स्वरूप था उसमें आज काफी बदलाव आ चुका है। इसकी शुरूआत तो हुई थी सामा जिक और आर्थिक कारणों से, क्योंकि उस समय जो पीढ़ी थी उसे लगा था कि हमें आजाद हुए इतने वर्ष हो गए परंतु अभी भी आर्थिक शोषण और सामाजिक असमानता ज्यों की त्यों हैं। सत्ता और सामथ्र्थ कुछ ताकतवर लोगों के हाथों में है, वहीं सब कुछ संचालित कर रहें हैं। जनता शोषित और पीडि़त है, ऐसे माहौल में चारू मजूमदार ने एक चिंगारी सुलगायी थी।
देखिए, ये भी कहना गलत होगा कि हिंसा का तत्व इधर कुछ वर्षो में इस आंदोलन में शानिल हुआ है। हिंसा तो शुरू से उनके आंदोलन का प्रमुख तत्व रही है। इसका केद्रिंय मंत्र ही था- वर्ग शत्रु का अंत करना। जमीनदार, सूदखओर, भ्रष्ट पुलिस अधिकारी आदि इनके निशाने पर रहें हैं। इनकी हत्या ही उनका एकमात्र लक्ष्य रहा है। नक्सली सशस्त्र काँति में विश्वास करतें हैं। मगर आज इस आंदोलन में विचारधारा जैसी चीज नही रही, उदेद्श्यहीन हिंसा प्रभावी हो गई है। विकास कार्य में बाधा डालना, सडक़े-पुल तोडऩा, राष्ट्र विरोधी से सांठ-गांठ करना आज इनके अभियान में शामिल हो गए हैं।
मैं तो यही कहना चाहता हूं कि आज नक्सली आंदोलन पूरी तरह भटक गया है। न कोई आदर्श है, न कोई कानून। ये रेलवे ट्रेक उड़ाते है माओ के नाम पर, थाने उड़ातें हैं लेनिन के नाम पर और लेवी(रंगदजारी) वसूलतें हैं माक्र्स के नाम पर।
प्रतीक शेखर
wise said dear...
ReplyDeleteachja hai
ReplyDeleteacha hai lekin thoda reserch ki jarurt hai...
ReplyDeletehmmm.. mitra bahot badhiya hai..mager thode or vistaar ki jarurt hai....
ReplyDeleteदोस्तों मैनें अपने तरफ से जितना हुआ उतना विचार दिया अब आपलोग कुछ अपना विचार देने का कष्ट करें
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